नई दिल्ली । दिल्ली में नए परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र का नाम और भूगोल बदल गया। उत्तर-पश्चिमी संसदीय क्षेत्र में कृष्णा तीरथ ने 56.84 प्रतिशत मतें से जीती थीं। यहां हर चुनाव में बदल जाते हैं चेहरे। यहां पिछले 3 चुनाव से एक अनूठा राजनीतिक ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है। पक्ष हो या विपक्ष हर बार चुनाव मैदान में नए चेहरे को मौका दिया जा रहा है। साहिब सिंह वर्मा और सज्जन सिंह जैसे इस क्षेत्र के कद्दावर नेताओं को अपनी कर्मभूमि छोड़नी पड़ी। वर्ष 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस ने कृष्णा तीरथ को मैदान में उतारा तो भाजना ने मीरा कांवरिया को। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मीरा कांवरिया के बजाय उदित राज को टिकट दिया तो कांग्रेस ने कृष्णा तीरथ पर ही भरोसा जताया।
इसके बाद पहली बार चुनाव मैदान में आई आम आदमी पार्टी ने राखी बिड़लान को मैदान में उतारा। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी उदित राज 46.45 प्रतिशत मत लेकर सांसद चुने गए। राखी बिड़लान को 38.57 प्रतिशत और कृष्णा तीरथ को मात्र 11.61 मत मिले। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सांसद उदित राज का टिकट काट दिया और हंसराज हंस के रूप में नया चेहरा मैदान में उतारा। परिसीमन के बाद उत्तर-पश्चिमी नाम से अस्तित्व में आए इस संसदीय क्षेत्र को आरक्षित सीट घोषित किया गया। इस कारण सभी राजनीतिक दलों को नए चेहरे और नई रणनीति के साथ मैदान में उतरना पड़ा। वर्ष 2009 से लगातार चौथी बार भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी बदला है। कमोबेश इसी राह पर विपक्षी दल भी चल रहे हैं। केवल कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा तीरथ को अपवाद कह सकते हैं। इसी तर्ज पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार बदल दिए। आम आदमी पार्टी ने गुगन सिंह और कांग्रेस ने राजेश लिलोठिया को मौका दिया। हंसराज हंस ने करीब 60 प्रतिशत मत लेकर जीत हासिल की। भारी संख्या में मत हासिल करने वाले हंसराज हंस को 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट नहीं दिया है।